शिया और सुन्नी मुसलमानों के बीच क्या अन्तर है ?
शिया और सुन्नी मुसलमान इस्लाम के दो प्रमुख सम्प्रदाय हैं, और इनके बीच मुख्य अंतर धार्मिक, ऐतिहासिक और सांस्कृतिक स्तर पर हैं। ये अंतर निम्नलिखित बिंदुओं में समझे जा सकते हैं:
1. उत्पत्ति और ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
- मूल विवाद: शिया और सुन्नी सम्प्रदाय का विभाजन पैगंबर मुहम्मद की मृत्यु (632 ई.) के बाद खलीफा (उत्तराधिकारी) के चयन को लेकर शुरू हुआ।
- सुन्नी: मानते हैं कि खलीफा को समुदाय द्वारा चुना जाना चाहिए। उन्होंने अबू बकर, पैगंबर के ससुर और सहयोगी, को पहला खलीफा माना।
- शिया: मानते हैं कि खलीफा का नेतृत्व पैगंबर के परिवार (अहल-ए-बैत) में रहना चाहिए, विशेष रूप से उनके चचेरे भाई और दामाद अली इब्न अबी तालिब को। शिया अली को पहला इमाम मानते हैं और उनका मानना है कि नेतृत्व का अधिकार केवल अली और उनके वंशजों को है।
2. नेतृत्व और इमामत
- सुन्नी: खलीफा को समुदाय का राजनीतिक और धार्मिक नेता मानते हैं, जो चुना जाता है। सुन्नी परंपरा में चार “राशिदून” (सही मार्गदर्शन वाले) खलीफा (अबू बकर, उमर, उस्मान, अली) प्रमुख हैं। इसके बाद उमय्यद, अब्बासिद जैसे खलीफा आए।
- शिया: इमाम को ईश्वर द्वारा नियुक्त आध्यात्मिक और धार्मिक नेता मानते हैं, जो अली और उनके वंशज (हुसैन, हसन आदि) हैं। शिया इमाम को पापरहित (मासूम) और ईश्वरीय ज्ञान का धारक मानते हैं। शिया में कई उप-सम्प्रदाय हैं, जैसे:
- इथना अशरिया (Twelver): 12 इमामों में विश्वास, जिसमें 12वां इमाम (महदी) गायब है और लौटेगा।
- इस्माइली: सात इमामों में विश्वास करते हैं।
- ज़ैदी: पांच इमामों में विश्वास करते हैं।
3. धार्मिक प्रथाएं और रीति-रिवाज
- नमाज़ (प्रार्थना):
- सुन्नी: पांच दैनिक नमाज़ अलग-अलग समय पर पढ़ते हैं, लेकिन कुछ परिस्थितियों में दो नमाज़ को मिला सकते हैं (जैसे ज़ुहर और असर)।
- शिया: पांच नमाज़ को तीन समय में पढ़ सकते हैं (जैसे ज़ुहर-असर और मग़रिब-इशा एक साथ)।
- मुहर्रम और अशूरा:
- शिया: मुहर्रम, खासकर अशूरा (10वां दिन), बहुत महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह हुसैन इब्न अली की शहादत (680 ई. में कर्बला की जंग) की याद में मनाया जाता है। शिया इस दिन मातम, जुलूस और ताज़िया निकालते हैं।
- सुन्नी: अशूरा को उपवास और प्रार्थना के लिए महत्वपूर्ण मानते हैं, लेकिन यह हुसैन की शहादत से कम जुड़ा है।
- अस्थायी विवाह (मुता):
- शिया: कुछ शिया सम्प्रदाय (जैसे इथना अशरिया) में अस्थायी विवाह (मुता) की अनुमति है, जो एक निश्चित समय के लिए वैवाहिक अनुबंध है।
- सुन्नी: इसे स्वीकार नहीं करते और इसे गैर-इस्लामी मानते हैं।
4. कानूनी और धार्मिक व्याख्या
- सुन्नी: चार प्रमुख फ़िक़्ह (कानूनी स्कूल) – हनफी, मालिकी, शाफ़ी, हंबली – का पालन करते हैं। हदीस और सुन्नत (पैगंबर की परंपराएँ) पर जोर देते हैं, और कुरान के बाद सहाबा (पैगंबर के साथी) की हदीस को प्राथमिकता देते हैं।
- शिया: जाफ़री फ़िक़्ह का पालन करते हैं। कुरान और पैगंबर के साथ-साथ इमामों की शिक्षाओं और हदीस को महत्व देते हैं। शिया हदीस संग्रह अलग हैं, जैसे “किताब-ए-कुलैनी”।
5. विश्वास और आध्यात्मिकता
- सुन्नी: अधिक जोर सामुदायिक एकता और इस्लाम की सामान्य प्रथाओं पर है। इमामों को विशेष आध्यात्मिक शक्ति नहीं देते।
- शिया: इमामों को ईश्वरीय मार्गदर्शन और आध्यात्मिक शक्ति का धारक मानते हैं। “विलायत-ए-फ़कीह” (इथना अशरिया में) जैसे सिद्धांत कुछ शिया समुदायों में धार्मिक नेतृत्व को प्रभावित करते हैं।
6. जनसंख्या और भौगोलिक वितरण
- सुन्नी: विश्व के मुसलमानों का लगभग 85-90% हिस्सा। भारत, पाकिस्तान, सऊदी अरब, मिस्र, तुर्की जैसे देशों में बहुसंख्यक।
- शिया: विश्व के मुसलमानों का 10-15%। ईरान, इराक, बहरीन, और भारत के कुछ हिस्सों (जैसे लखनऊ, कश्मीर) में प्रमुख।
7. सांस्कृतिक और सामाजिक अंतर
- शिया: अक्सर हुसैन की शहादत और अहल-ए-बैत के प्रति गहरी भावनात्मक और आध्यात्मिक लगाव रखते हैं, जो उनकी कला, साहित्य और जुलूसों में दिखता है।
- सुन्नी: अधिक विविध सांस्कृतिक प्रथाएँ, जो क्षेत्रीय परंपराओं पर निर्भर करती हैं, जैसे सूफी परंपराएँ भारत में।
भारत में संदर्भ
भारत में सुन्नी और शिया दोनों समुदाय हैं। सुन्नी बहुसंख्यक हैं, जबकि शिया लखनऊ, हैदराबाद, कश्मीर जैसे क्षेत्रों में प्रमुख हैं। दोनों समुदाय आपसी सम्मान के साथ रहते हैं, लेकिन कुछ मौकों पर (जैसे मुहर्रम) अलग-अलग प्रथाएँ दिखती हैं।
शिया और सुन्नी दोनों ही इस्लाम के अनुयायी हैं और कुरान, पैगंबर मुहम्मद, और इस्लाम के मूल सिद्धांतों पर विश्वास करते हैं। अंतर मुख्य रूप से नेतृत्व, धार्मिक प्रथाओं, और ऐतिहासिक व्याख्याओं में है। आपसी समझ और सम्मान से दोनों समुदाय एक साथ रह सकते हैं।
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