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MP: दिवाली की खुशियों में मौत बनकर फटी ‘कार्बाइड गन’, 14 बच्चों ने हमेशा के लिए खोई आंखों की रोशनी; 122 घायल

carbide-gun MP: दिवाली की खुशियों में मौत बनकर फटी ‘कार्बाइड गन’, 14 बच्चों ने हमेशा के लिए खोई आंखों की रोशनी; 122 घायल

मध्य प्रदेश में इस बार की दिवाली लोगों के लिए खुशियों की जगह जख्म लेकर आई. कार्बाइड गन या डेजी फायर क्रैकर गन नाम का ये देसी पटाखा बच्चों के लिए कहर बन गया. तीन दिनों में प्रदेश भर में 130 से ज्यादा बच्चे इस खतरनाक खिलौने की चपेट में आकर अस्पताल पहुंच गए, जिनमें से 14 ने अपनी आंखों की रोशनी हमेशा के लिए खो दी. भोपाल, इंदौर, ग्वालियर, जबलपुर और विदिशा जैसे जिलों में यह जुगाड़ गन खुलेआम बिकती रही. डॉक्टरों का कहना है कि घायलों में ज्यादातर 6 से 15 साल के बच्चे शामिल हैं.

दिवाली की खुशियां मातम में बदलीं

इस बार दिवाली का उल्लास कई परिवारों के लिए दर्दनाक हादसे में बदल गया. भोपाल, इंदौर, ग्वालियर और जबलपुर जैसे बड़े शहरों के साथ-साथ विदिशा जिले में भी यह खतरनाक जुगाड़ गन खुलेआम बिकती रही. डॉक्टरों के मुताबिक, कार्बाइड गन से घायल ज्यादातर बच्चे 6 से 15 साल की उम्र के हैं. इनकी दिवाली की खुशियां अब हमेशा के लिए पीड़ा में बदल गई हैं. भोपाल में ही 70 से अधिक घायल बच्चों का इलाज विभिन्न अस्पतालों में किया जा रहा है, जिसमें हमीदिया, जेपी, सेवा सदन और एम्स में बच्चों का इलाज चल रहा है. कई के चेहरे झुलस गए हैं तो कुछ की आंखों को गंभीर नुकसान पहुंचा है.

कैसे बनाई जाती है ये कार्बाइड गन?

यह देसी गन कैल्शियम कार्बाइड, प्लास्टिक पाइप और गैस लाइटर के संयोजन से बनाई जाती है. कार्बाइड जब पानी से संपर्क करता है तो उससे एसिटिलीन गैस बनती है, जो चिंगारी पड़ते ही विस्फोट करती है. धमाके की ताकत से प्लास्टिक पाइप के टुकड़े छर्रों की तरह निकलकर आंखों, चेहरे और शरीर को घायल कर देते हैं. बाजार में ये गन करीब 150 रुपए में मिल जाती है. डॉक्टरों का कहना है कि इस तरह का विस्फोटक खिलौना पटाखा नहीं बल्कि एक घातक हथियार है.

फूट-फूट कर रो पड़े बच्चों के परिजन

हमीदिया अस्पताल में भर्ती 14 वर्षीय हेमंत पंथी और 15 वर्षीय आरिस के परिजन फूट-फूट कर रो पड़े. आरिस के पिता सरीख खान ने नाराजगी जताते हुए कहा कि सरकार को ऐसी खतरनाक वस्तुएं बेचने वालों पर कड़ी कार्रवाई करनी चाहिए. हमारे बच्चों की आंखों की कीमत कोई नहीं चुका सकता. वहीं घायल नेहा और राज विश्वकर्मा जैसे कई बच्चों ने बताया कि उन्होंने सोशल मीडिया पर देखकर ऐसी गन बनाई थी, लेकिन विस्फोट के बाद उनकी आंखों की रोशनी चली गई.

भोपाल एम्स में भर्ती 12 वर्षीय बच्चे की आंख बचाने के लिए डॉक्टर लगातार प्रयास कर रहे हैं. वहीं हमीदिया अस्पताल में अब तक 26 से अधिक बच्चों का इलाज किया जा चुका है. दिवाली के अगले ही दिन भोपाल में ज्यादातर केस दर्ज हुए, जिनमें से कई को प्राथमिक उपचार के बाद घर भेजा गया.

CM ने दिए थे सख्त निर्देश, फिर भी बजारों में बिकी ये गन

गौरतलब है कि मुख्यमंत्री मोहन यादव ने 18 अक्टूबर को ही प्रशासन को कार्बाइड गन की बिक्री रोकने के निर्देश दिए थे, लेकिन बावजूद इसके बाजारों में ये पटाखा गन आसानी से मिलती रही. लापरवाही का नतीजा यह हुआ कि सैकड़ों परिवारों की दिवाली मातम में बदल गई. अब प्रदेश भर से मांग उठ रही है कि इस जानलेवा गन के निर्माण और बिक्री पर पूर्ण प्रतिबंध लगाया जाए और घायल बच्चों को उचित मुआवजा व मुफ्त इलाज दिया जाए. यह घटना चेतावनी है कि मनोरंजन और प्रयोग के नाम पर बने ऐसे खतरनाक जुगाड़ उपकरण समाज के लिए कितना बड़ा खतरा हैं.

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