नहीं, भारत के प्रधानमंत्री की मदद से पाकिस्तान ने परमाणु बम नहीं बनाया है। पाकिस्तान ने अपने परमाणु कार्यक्रम को स्वतंत्र रूप से विकसित किया है और इसमें भारत के किसी प्रधानमंत्री का कोई सीधा योगदान नहीं है।
पाकिस्तान ने अपने परमाणु हथियार कार्यक्रम की शुरुआत 1970 के दशक के मध्य में की थी, जब अब्दुल कदीर ख़ान जैसे वैज्ञानिकों ने इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। पाकिस्तान ने परमाणु बम बनाने के लिए कई वर्षों तक कड़ी मेहनत की और 1998 में भारत द्वारा परमाणु परीक्षण (पोखरण-2) के बाद पाकिस्तान ने भी अपनी परमाणु शक्ति का परीक्षण किया।
भारत और पाकिस्तान दोनों ही देशों ने अपने-अपने देशों में परमाणु बम के विकास के लिए स्वतंत्र रूप से अनुसंधान और विकास किया है। पाकिस्तान का परमाणु कार्यक्रम मुख्य रूप से अब्दुल कदीर ख़ान द्वारा संचालित किया गया था, जो पाकिस्तान के “परमाणु बम का जनक” माने जाते हैं।
पाकिस्तान ने कभी भी भारत के प्रधानमंत्री से परमाणु बम बनाने में कोई मदद नहीं ली। हालांकि, पाकिस्तान ने कुछ आरोप लगाए थे कि अब्दुल कदीर ख़ान ने परमाणु प्रौद्योगिकी का कुछ हिस्सा काले बाजार से खरीदी थी, लेकिन भारत के प्रधानमंत्री या भारत सरकार का इसमें कोई सीधा हाथ नहीं था।
इसलिए यह कहना कि “भारत के प्रधानमंत्री की मदद से पाकिस्तान ने परमाणु बम बनाया” गलत और असत्य है।
पाकिस्तान ने परमाणु बम बनाने के लिए एक लंबी और गुप्त प्रक्रिया का पालन किया, जिसे पाकिस्तान ने स्वतंत्र रूप से और अपनी वैज्ञानिक टीम के नेतृत्व में पूरा किया। पाकिस्तान का परमाणु कार्यक्रम मुख्य रूप से अब्दुल कदीर ख़ान के नेतृत्व में विकसित हुआ, जो पाकिस्तान के परमाणु बम के जनक माने जाते हैं। यहां पर हम विस्तार से देखेंगे कि पाकिस्तान ने किस प्रकार परमाणु बम बनाया:
1. परमाणु कार्यक्रम की शुरुआत (1970s)
पाकिस्तान ने 1970 के दशक के मध्य में अपने परमाणु कार्यक्रम की शुरुआत की। इसके पीछे एक मुख्य कारण भारत का परमाणु परीक्षण था। भारत ने 1974 में “स्माइलिंग बुद्धा” नामक ऑपरेशन के तहत पहला परमाणु परीक्षण किया, जिससे पाकिस्तान को यह एहसास हुआ कि उसे भी अपनी रक्षा के लिए परमाणु हथियारों की आवश्यकता है।
2. अब्दुल कदीर ख़ान का योगदान
पाकिस्तान का परमाणु कार्यक्रम मुख्य रूप से अब्दुल कदीर ख़ान के नेतृत्व में विकसित हुआ, जो एक कुशल वैज्ञानिक थे। ख़ान ने यूरोप में कई साल काम किया था और उन्होंने हॉलैंड (नीदरलैंड्स) में यूरेनियम प्रसंस्करण (Uranium enrichment) में महारत हासिल की थी।
- 1975 में कदीर ख़ान ने पाकिस्तान वापस लौटने के बाद अपनी टीम बनायी और किरक (Kirk) यूरेनियम प्रसंस्करण संयंत्र पर काम शुरू किया।
- ख़ान ने गहरे तकनीकी ज्ञान का इस्तेमाल किया और विभिन्न देशों से परमाणु प्रौद्योगिकी का काले बाजार से व्यापार किया। उन्होंने यूरोप और अन्य देशों से उपकरण और तकनीक प्राप्त की, जिनका उपयोग पाकिस्तान के परमाणु कार्यक्रम में किया गया।
3. काले बाजार से सामग्री प्राप्त करना
पाकिस्तान ने काले बाजार से परमाणु प्रौद्योगिकी और उपकरण खरीदे। इस तरह से अब्दुल कदीर ख़ान ने काले बाजार के माध्यम से कुछ आवश्यक सामग्री हासिल की, जो अन्य देशों से आयात की गई थी। इन चीजों में यूरेनियम संवर्धन उपकरण और अन्य आवश्यक सामग्री शामिल थीं। ख़ान ने इस काले बाजार नेटवर्क का उपयोग किया, जो A.Q. Khan Network के नाम से जाना जाता था, और इसके माध्यम से कई देशों से तकनीकी जानकारी और सामग्रियां प्राप्त की गईं।
4. प्रारंभिक परीक्षण और सफलता (1980s-1990s)
1980 के दशक के अंत तक पाकिस्तान ने अपनी परमाणु प्रौद्योगिकी में महत्वपूर्ण प्रगति की। पाकिस्तान के वैज्ञानिकों ने यूरेनियम संवर्धन (Uranium enrichment) और प्लूटोनियम प्रसंस्करण (Plutonium processing) पर काम किया। पाकिस्तान ने अपनी परमाणु परीक्षण साइट की स्थापना की और इस कार्यक्रम के लिए जरूरी उपकरण विकसित किए।
5. 1998 में परमाणु परीक्षण
1998 में भारत ने पोखरण-2 परमाणु परीक्षण किया, जिसके बाद पाकिस्तान ने भी अपनी परमाणु क्षमता का परीक्षण करने का फैसला लिया। 28 और 30 मई 1998 को पाकिस्तान ने चागाई टेस्ट साइट पर 5 परमाणु परीक्षण किए। ये परीक्षण पाकिस्तान के परमाणु कार्यक्रम की सफलता का प्रतीक थे और इसके बाद पाकिस्तान भी एक परमाणु शक्ति के रूप में दुनिया में उभरा।
6. परमाणु बम का निर्माण
पाकिस्तान ने मुख्य रूप से यूरेनियम आधारित परमाणु बम बनाए। ये बम विशेष रूप से यूरेनियम संवर्धन (enriched uranium) तकनीक पर आधारित थे, जिसे अब्दुल कदीर ख़ान और उनकी टीम ने विकसित किया। इसके अलावा, पाकिस्तान ने प्लूटोनियम आधारित बमों के लिए भी तकनीक विकसित की थी।
7. अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया
पाकिस्तान के परमाणु परीक्षण के बाद, अंतरराष्ट्रीय समुदाय में हलचल मच गई। संयुक्त राष्ट्र और कुछ पश्चिमी देशों ने पाकिस्तान के परमाणु परीक्षण की आलोचना की, लेकिन पाकिस्तान ने अपनी सुरक्षा और राष्ट्रीय हितों का हवाला देते हुए परमाणु बम बनाने का बचाव किया। पाकिस्तान ने कहा कि ये परीक्षण भारत के परमाणु हथियारों के जवाब में किए गए थे।
पाकिस्तान ने अपनी परमाणु शक्ति को अपने वैज्ञानिकों, विशेष रूप से अब्दुल कदीर ख़ान, के नेतृत्व में स्वतंत्र रूप से विकसित किया। पाकिस्तान ने अपनी परमाणु क्षमता को बनाने के लिए यूरेनियम संवर्धन तकनीक, काले बाजार से सामग्री हासिल करने, और प्लूटोनियम प्रसंस्करण जैसी विधियों का इस्तेमाल किया। इसके बाद पाकिस्तान ने 1998 में सफल परमाणु परीक्षण करके दुनिया में अपनी परमाणु शक्ति का प्रदर्शन किया।
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