ऐसे दावे इस लिए किए जाते हैं क्योंकि ढाई दिन के झोपड़ा में जो 25 फ़ीट ऊंचे 70 स्तम्भ हैं उनमे शानदार नक्काशी है और यह नक्काशी कहीं से भी इस्लामिक नहीं दिखाई देती, वैसे भी जाहिल मुग़लों को कुछ बनाना नहीं सिर्फ तोडना आता था. ढाई दिन के अंदर 25 फ़ीट ऊँचे 70 खम्बों को तराशना और स्थापित करना कहीं से भी लॉजिकल नहीं लगता है. हिन्दू पक्ष का दावा है कि यह प्राचीन स्तम्भ हिन्दू मंदिर के थे. जिसका इस्तेमाल दरगाह बनाने के लिए किया गया था, यह असल में इस्लामिक ढांचे से ज़्यादा मंदिर दिखाई देता है.
मुहम्मद गोरी बड़ा क्रूर इस्लामिस्ट था, उसकी नीयत सिर्फ सनातनी हिन्द की पहचान एक इस्लामिक मुल्क में तब्दील करने की थी, सो वो यही करता था. ऐसा दावा है कि जहां ढाई दिन का झोपड़ा है उससे पहले वहां संस्कृत विद्यालय और एक प्राचीन मंदिर हुआ करता था, जब अनपढ़ गोरी ने लोगों को संस्कृत की शिक्षा लेते देखा तो उससे यह बर्दाश्त नहीं हुआ, और उसने संस्कृत विद्यालय या कहें की गरूकुल और मंदिर को तोड़ डाला।
मुहम्मद गोरी भारत में इस्लामिक शासन चाहता था और हिन्दुओं से नफरत करता था इसी लिए उसे जो भी मंदिर दिखाई देते थे वो उन्हें तोड़कर वहां अपने मजहबी ढांचे खड़े कर देता था. सन 1192 में मुहम्मद गोरी ने ढाई दिन का झोपड़ा का निर्माण करवाया था.
अढ़ाई दिन का झोपड़ा के बाईं तरफ संगमरमर का शिलालेश है जिसमे यह साफ़ लिखा है कि यहां पहले संस्कृत स्कूल या गुरुकुल और मंदिर हुआ करता था. जिसे कुंठाग्रस्त इस्लामिक आतंकी गोरी ने तोड़कर दरगाह बनवा दी थी.
अढ़ाई दिन का झोपड़ा – अजमेर का इतिहास:
- स्थान और निर्माण:
- अढ़ाई दिन का झोपड़ा मस्जिद अजमेर (राजस्थान) में स्थित है। इसे क़ुतुब-उद-दीन ऐबक द्वारा 1199 ईस्वी में बनवाया गया था। क़ुतुब-उद-दीन ऐबक दिल्ली के पहले सुलतान थे और उन्होंने इस मस्जिद को अजमेर में स्थापित किया था।
- इस मस्जिद का नाम “अढ़ाई दिन का झोपड़ा” इसलिए पड़ा क्योंकि इसे ढाई दिन में बनाने का दावा किया गया था, जो इसे असामान्य और तत्कालीन समय के लिए एक बड़ी उपलब्धि मानी जाती थी।
- क्या यह मंदिर के ऊपर बनी थी?
- लोककथाएँ और कुछ ऐतिहासिक स्रोतों के अनुसार, यह मस्जिद हिंदू मंदिर के ऊपर बनाई गई थी। कुछ इतिहासकारों का मानना है कि मस्जिद के निर्माण स्थल पर पहले एक हिंदू मंदिर था, जिसे तोड़ा गया और उसकी ज़मीन पर मस्जिद बनाई गई।
- इस मामले में कई विवाद हैं। कुछ लोग मानते हैं कि यह मस्जिद कई हिंदू मंदिरों को तोड़कर बनाई गई, जिनमें एक बड़ा मंदिर भी शामिल था।
- वास्तुकला और डिजाइन:
- मस्जिद की वास्तुकला में मुगल और हिंदू स्थापत्य कला का मिश्रण देखा जा सकता है। मस्जिद का डिज़ाइन खासतौर पर हिंदू मंदिरों की संरचनाओं को अपनाने वाला था, जो उस समय के मुगल स्थापत्य में बदलाव की शुरुआत को दर्शाता है।
- यह मस्जिद राजपूत शैली के मंदिरों के डिजाइन से प्रभावित थी, और इसने भारतीय स्थापत्य की पारंपरिक विशेषताओं को अपनाया।
क्या यह मस्जिद हिंदू मंदिर के ऊपर बनी थी?
- ऐतिहासिक और पुरातात्विक प्रमाण इस मुद्दे पर स्पष्ट नहीं हैं। कई इतिहासकार मानते हैं कि मस्जिद का निर्माण एक हिंदू मंदिर की ज़मीन पर किया गया था, जो पहले इस स्थान पर था। वहीं कुछ लोग मानते हैं कि यहां एक मस्जिद ही बनी थी, और इस पर केवल लोक कथाएँ या धार्मिक विवाद पैदा किए गए थे।
- यह विवाद मुख्यतः उस समय की धार्मिक संघर्षों और राजनीतिक परिस्थितियों से जुड़ा हुआ है।
मुस्लिम शासन के दौरान, कुछ मस्जिदों का निर्माण हिंदू मंदिरों के ऊपर या उनके पास किया गया था, और इसके कई ऐतिहासिक और राजनीतिक कारण हो सकते हैं:
1. राजनीतिक और धार्मिक प्रभाव:
- मुस्लिम शासकों, विशेषकर मुगल साम्राज्य के दौरान, एक साथ धार्मिक और राजनीतिक नियंत्रण स्थापित करने की कोशिश करते थे। मंदिरों के ऊपर मस्जिदें बनाने का एक कारण यह हो सकता था कि इससे धार्मिक प्रभुत्व और राजनीतिक दबदबा स्थापित किया जा सके। यह कार्य अक्सर समाज में डर और दबाव उत्पन्न करने के लिए किया जाता था।
2. सांस्कृतिक और धर्मनिरपेक्ष संघर्ष:
- हिंदू धर्म और इस्लाम के बीच संघर्ष के कारण, कुछ मुस्लिम शासकों ने हिंदू मंदिरों को तोड़कर या उनके ऊपर मस्जिदें बनवाकर अपनी धार्मिक श्रेष्ठता का प्रतीक बना दिया। यह एक तरह से सांस्कृतिक विजय और धार्मिक पहचान को व्यक्त करने का तरीका था।
3. भूमि का विवाद और कब्ज़ा:
- कई बार यह मस्जिदें हिंदू मंदिरों के स्थान पर बनाई गईं, क्योंकि यह भूमि राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण थी। शासक इस भूमि पर अपनी शक्ति और शासन का दिखावा करना चाहते थे। उदाहरण के तौर पर, बाबरी मस्जिद का विवाद, जो राम जन्मभूमि के स्थल पर था, इसका कारण भी यही था कि दो धार्मिक समूह उस स्थान को पवित्र मानते थे।
4. मुगल वास्तुकला का विकास:
- कुछ मामलों में, मुस्लिम शासकों ने हिंदू मंदिरों की वास्तुकला को अपनी मस्जिदों में समाहित किया। ऐसा अक्सर तब होता था जब मुस्लिम शासकों ने स्थानीय वास्तुकला को अपनाया, ताकि उनके शासन में स्थानीय संस्कृति को भी सम्मान दिया जा सके, लेकिन साथ ही अपनी धार्मिक पहचान को भी बनाए रखा।
5. प्रेरणा से ज्यादा शक्ति का प्रतीक:
- हालांकि कुछ मामलों में मस्जिदों का निर्माण धार्मिक सम्मान और संस्कृति की स्वीकृति के लिए किया गया था, कई बार यह कार्य एक राजनीतिक कदम के रूप में किया गया था, ताकि हिन्दू समुदाय के विश्वास को चुनौती दी जा सके या अधिकार की पुष्टि की जा सके।
6. विभाजन और विजय का प्रतीक:
- मुस्लिम शासकों द्वारा मंदिरों पर मस्जिदें बनाने की स्थिति को कुछ लोग धार्मिक विजय के प्रतीक के रूप में भी देखते हैं। हिंदू धार्मिक स्थलों को नष्ट करना और उनके स्थान पर मस्जिद बनवाना, उनके लिए यह सांस्कृतिक और धार्मिक विजय का रूप था।
मुस्लिम शासकों द्वारा मस्जिदों का निर्माण हिंदू मंदिरों के ऊपर कई कारणों से हुआ: राजनीतिक और धार्मिक प्रभुत्व, सांस्कृतिक संघर्ष, और कभी-कभी भूमि के कब्ज़े के लिए। हालांकि हर मामले का ऐतिहासिक संदर्भ और कारण अलग-अलग हो सकता है, लेकिन यह आम तौर पर उस समय की धार्मिक और राजनीतिक परिस्थितियों के प्रभाव से जुड़ा हुआ था।
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