बाबा साहेब डॉ. भीमराव अंबेडकर और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के बीच की तनावपूर्ण और जटिल संबंधों की वजहें इतिहास में बहुत गहरी हैं। डॉ. अंबेडकर भारतीय समाज में बदलाव लाने, दलितों और पिछड़े वर्गों के अधिकारों की रक्षा करने के लिए पूरी तरह से समर्पित थे, जबकि कांग्रेस उस समय मुख्य रूप से एक समृद्ध, उच्च जातियों और प्रचलित ब्राह्मणवादी व्यवस्था का पक्ष लेने वाली पार्टी के रूप में सामने आई थी।
आइए, कुछ प्रमुख कारणों पर गौर करें, जिनकी वजह से बाबा साहेब को कांग्रेस से इतनी नफरत थी:
1. दलितों के लिए कांग्रेस का नजरिया
कांग्रेस ने स्वतंत्रता संग्राम के दौरान जो रणनीतियां अपनाईं, वे ज्यादा जमीनी और व्यापक रूप से समाज के निचले तबके के लिए प्रभावी नहीं थीं। डॉ. अंबेडकर का मानना था कि कांग्रेस केवल उच्च जातियों के हितों की रक्षा कर रही थी और दलितों और पिछड़ों के अधिकारों की अनदेखी कर रही थी।
कांग्रेस के कई नेताओं, खासकर गांधी जी, का अधिक ध्यान हिंदू धर्म और जातिवाद के सुधार की बजाय, ब्रिटिश साम्राज्यवाद के खिलाफ संघर्ष पर था। गांधी जी ने जो “हिंदू-मुस्लिम एकता” की बात की, उसमें दलितों की स्थिति को ज्यादा महत्व नहीं दिया गया था, जिससे अंबेडकर को यह महसूस हुआ कि कांग्रेस केवल उच्च जातियों का ही पक्ष ले रही है।
2. मुस्लिम लीग और “दो राष्ट्र सिद्धांत”
कांग्रेस और मुस्लिम लीग के बीच तकरार के दौरान, बाबा साहेब ने देखा कि कांग्रेस मुस्लिम समुदाय के अधिकारों की सुरक्षा के लिए अधिक काम कर रही थी, जबकि दलित समुदाय की उपेक्षा की जा रही थी। जब 1947 में विभाजन हुआ, तो कांग्रेस ने मुस्लिम लीग के दो राष्ट्र सिद्धांत को लेकर समझौता किया, लेकिन अंबेडकर को इस पर खासी आपत्ति थी। उन्होंने महसूस किया कि कांग्रेस ने अपने समझौतों के दौरान दलितों के हितों को अनदेखा किया।
3. गांधी और अंबेडकर के मतभेद
डॉ. अंबेडकर और महात्मा गांधी के बीच कई बार मतभेद उभरकर सामने आए। सबसे प्रसिद्ध विवाद “पूना पैक्ट” (1932) के समय हुआ। गांधी जी ने “हड़ताल” की धमकी दी थी जब अंबेडकर ने दलितों के लिए अलग निर्वाचन क्षेत्र की मांग की थी। गांधी जी का मानना था कि इससे हिंदू समाज में और अधिक विभाजन होगा, जबकि अंबेडकर का मानना था कि यह दलितों के लिए जरूरी था ताकि वे अपने अधिकारों की रक्षा कर सकें। इस विवाद का समाधान “पूना पैक्ट” के रूप में हुआ, लेकिन अंबेडकर ने कभी नहीं मानी कि गांधी जी और कांग्रेस ने दलितों के लिए सच में कुछ ठोस किया।
4. संविधान निर्माण में अंबेडकर की भूमिका
भारतीय संविधान के निर्माण में डॉ. अंबेडकर का महत्वपूर्ण योगदान था, और उनका मानना था कि संविधान में दलितों और पिछड़े वर्गों के अधिकारों की पूरी तरह से रक्षा की जानी चाहिए। लेकिन कांग्रेस पार्टी के भीतर भी ऐसे लोग थे, जो इसे लेकर सावधान थे। अंबेडकर का यह विश्वास था कि कांग्रेस ने संविधान में जितनी अहमियत दलितों और पिछड़े वर्गों के लिए दी, वह पर्याप्त नहीं थी, और कांग्रेस ने बार-बार उनकी मांगों को नजरअंदाज किया।
5. दलितों के लिए विशेष अधिकारों की जरूरत
डॉ. अंबेडकर ने दलितों के लिए विशेष अधिकारों की जरूरत की बात की थी, ताकि वे समाज में समानता प्राप्त कर सकें। वे मानते थे कि जब तक हिंदू समाज के भीतर जातिवाद का उन्मूलन नहीं होगा, तब तक दलितों के लिए आरक्षण और अन्य सामाजिक सुरक्षा की व्यवस्था आवश्यक रहेगी। कांग्रेस पार्टी ने इस मुद्दे पर मिश्रित प्रतिक्रिया दी, और यही कारण था कि अंबेडकर को कांग्रेस से निराशा हुई।
6. गांधीवाद और सामाजिक सुधार
डॉ. अंबेडकर गांधी के “हिंदू धर्म सुधार” के दृष्टिकोण से भी सहमत नहीं थे। गांधी जी ने हमेशा हिंदू धर्म के भीतर सुधार की बात की, जबकि अंबेडकर का मानना था कि हिंदू धर्म को छोड़कर अन्य विकल्पों की खोज की जानी चाहिए, जैसे कि बौद्ध धर्म को अपनाना। अंबेडकर ने 1956 में बौद्ध धर्म अपनाया, और इसके पीछे का मुख्य कारण यह था कि वे हिंदू धर्म और जातिवाद से मुक्ति पाना चाहते थे।
डॉ. भीमराव अंबेडकर ने भारतीय समाज की जटिलता को समझते हुए हर कदम पर दलितों और पिछड़े वर्गों के अधिकारों की रक्षा की। उन्होंने महसूस किया कि कांग्रेस, खासकर गांधी के नेतृत्व में, दलितों के लिए पर्याप्त कार्य नहीं कर रही थी और उच्च जातियों के हितों को ज्यादा प्राथमिकता दे रही थी। इसलिए, कांग्रेस और अंबेडकर के बीच एक गहरी खाई बन गई, जो अंततः एकदूसरे के खिलाफ़ अविश्वास और नफरत की भावना में बदल गई।
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