Eid-e-Milad 2025: ईद-ए मिलाद उन नबी पर क्या पढ़ना चाहिए, कौन सी इबादत करनी चाहिए?

Milad Un Nabi 2025: रबी-उल-अव्वल इस्लामी कैलेंडर का तीसरा महीना है, जो सफर के बाद आता है. इस महीने की इस्लाम में बेहद खास अहमियत है, क्योंकि इसमें ईद-ए मिलाद उन नबी का जश्न मनाया जाता है. ईद-ए मिलाद उन नबी यानी हजरत मुहम्मद की यौम-ए-विलादत और उनकी वफात. हर साल रबी-उल-अव्वल की 12 तारीख को मुसलमान यह ईद मनाते हैं. मुसलमानों के लिए ईद-ए मिलाद उन नबी बहुत ही खास है, क्योंकि यह इस्लाम के आखिरी पैगंबर मोहम्मद की पैदाइश और इंतकाल की याद दिलाती है. इस दिन दुनिया भर के मुसलमान बड़ी अकीदत से इबादत करते हैं और कुछ मुसलमान इस दिन मुहम्मद साहब के जन्मदिन का जश्न मनाते हैं.
इस बार 5 सितंबर को ईद-ए मिलाद उन नबी मनाई जाएगी. अक्सर लोग जानना चाहते हैं कि मिलाद उन नबी पर क्या पढ़ना चाहिए, कौन सी इबादत करनी चाहिए? आज हम आपको कुरान, हदीस और इस्लामिक स्कॉलरके मुताबिक बताएंगे कि मिलाद उन नबी पर आप क्या पढ़ सकते हैं.
ईद-ए-मिलाद पर क्या पढ़ना चाहिए?
इस्लामिक स्कॉलर मुफ्ती सलाउद्दीन कामसी ने कहा कि मिलाद उन नबी की इस रात की सबसे बेहतरीन इबादत है कुरान पाक की तिलावत. इस्लामी हदीसों में ऐसी कोई खास इबादत या नमाज का जिक्र नहीं किया गया है, जिसे मिलाद उन नबी पर पढ़ना चाहिए. आप चाहें तो इस दिन कुरान की कुछ खास सूरह जरूर पढ़ें जो कि नीचे दी गई हैं:-
सूरह यासीन:- इसे दिलों का सुकून और कुरान का दिल कहा गया है, इसलिए मिलाद उन नबी पर यह जरूर पढ़ें.
सूरह रहमान:- इसे कुरान की दुल्हन कहा गया है, इसलिए इस दिन सूरह रहमान भी पढ़नी चाहिए.
इसके अलावा, मिलाद उन नबी पर सूरह इखलास, सूरह फलक और सूरह नास पढ़ें, जो हर बुराई और शैतानी वसवसों से बचाती हैं. इस तिलावत का मकसद है अल्लाह की याद, दिल की सफाई और रहमत की तलाश.
मिलाद उन नबी पर भेजें दुरूद
मिलाद उन नबी की दूसरी अफजल इबादत है नबी पैगंबर मुहम्मद साहब पर दुरूद और सलाम भेजना. हदीस शरीफ में आता है जो शख्स उनपर एक बार दुरूद भेजता है, अल्लाह उस पर 10 रहमतें नाजिल करता है, इसलिए दुरूद-ए-इब्राहीमया दुरूद पाक जितना हो सके पढ़ें. इससे न सिर्फ सवाब मिलेगा, बल्कि नबी पैगंबर साहब की शफाअत भी नसीब होगी.
12 वफात की रात क्या पढ़ें?
मिलाद उन नबी की इस रात कोई खास फर्ज या वाजिब नमाज मुकर्रर नहीं की गई है, लेकिन आप चाहें तो दो-दो रकात नफ्ल नमाज पढ़ सकते हैं. हर नमाज के बाद अल्लाह से दुआ करें, तौबा और अस्तगफार करना बेहद जरूरी है. इस रात अल्लाह से अपने गुनाहों की माफी मांगें और नेक रास्ते पर चलने का इरादा करें.
मुफ्ती सलाउद्दीन कासमी कहते हैं कि ईद मिलाद नबी की रात असल में शुक्रिया अदा करने और तौबा करने की रात है. ऐसे में ईद-ए मिलाद उन नबी की रात कोई खास इबादत या खास नमाज फर्ज नहीं है, बल्कि इस रात को कुरान पढ़ना, मुहम्मद साहब पर दुरूद भेजना, तौबा करना, सदका देना और दुआ करना ही सबसे अफजल है.