
परिसीमन (Delimitation) एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके तहत चुनावी क्षेत्रों की सीमाओं का निर्धारण या पुनर्निर्धारण किया जाता है। यह प्रक्रिया यह सुनिश्चित करने के लिए की जाती है कि विभिन्न निर्वाचन क्षेत्रों के बीच जनसंख्या का समान प्रतिनिधित्व हो, ताकि चुनावों में निष्पक्षता और संतुलन बनाए रखा जा सके। परिसीमन का उद्देश्य है, सभी नागरिकों को समान रूप से मतदान का अधिकार और प्रतिनिधित्व मिल सके। यह प्रक्रिया संविधान के अनुसार निर्धारित होती है और समय-समय पर जनसंख्या के आधार पर किया जाता है।
परिसीमन से जुड़ी प्रक्रिया:
- आयोग का गठन:
राष्ट्रपति सर्वोच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश की अध्यक्षता में एक परिसीमन आयोग की नियुक्ति करते हैं। आयोग में सदस्य होते हैं, जो विभिन्न राज्य और केंद्र शासित प्रदेशों के प्रतिनिधित्व की स्थिति का मूल्यांकन करते हैं। - आधार:
परिसीमन का आधार जनगणना के आंकड़े होते हैं, जो हर 10 साल में होती है। जनसंख्या वृद्धि, सामाजिक-आर्थिक संरचना, और भौगोलिक स्थिति के आधार पर निर्वाचन क्षेत्रों की सीमाएं तय की जाती हैं। - निर्वाचन क्षेत्रों का निर्धारण:
आयोग विभिन्न पहलुओं का ध्यान रखते हुए निर्वाचन क्षेत्रों का पुनर्निर्धारण करता है। जैसे:- जनसंख्या: प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र में समान संख्या में मतदाता होने चाहिए।
- भौगोलिक स्थिति: निर्वाचन क्षेत्र की भौगोलिक स्थिति और प्रशासनिक सुविधाओं का ध्यान रखा जाता है।
- समाज और जातीय संरचना: समाज के विभिन्न वर्गों का सही प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करना।
- रिपोर्ट और अनुमोदन:
परिसीमन आयोग अपनी रिपोर्ट राष्ट्रपति को प्रस्तुत करता है, और इसे लागू किया जाता है। यह रिपोर्ट राज्य सरकारों और केंद्र सरकार को भेजी जाती है, और उसके बाद नए परिसीमन का पालन किया जाता है।
संविधान में परिसीमन का प्रावधान:
भारतीय संविधान में परिसीमन की प्रक्रिया का उल्लेख अनुच्छेद 82 और अनुच्छेद 170 में किया गया है:
- अनुच्छेद 82:
यह अनुच्छेद कहता है कि प्रत्येक जनगणना के बाद राष्ट्रपति एक परिसीमन आयोग गठित करेंगे, जो राज्यों के विधानसभा क्षेत्रों और संसद के निर्वाचन क्षेत्रों का परिसीमन करेगा। - अनुच्छेद 170:
इस अनुच्छेद के तहत यह प्रावधान है कि राज्य विधानसभाओं के निर्वाचन क्षेत्रों का परिसीमन किया जाएगा, ताकि प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र में उचित संख्या में लोग प्रतिनिधित्व पा सकें।
महत्व:
- न्यायपूर्ण प्रतिनिधित्व:
परिसीमन के माध्यम से यह सुनिश्चित किया जाता है कि हर राज्य और केंद्र शासित प्रदेश के नागरिकों को समान प्रतिनिधित्व मिले। - मतदान में समानता:
जनसंख्या में परिवर्तन के साथ, परिसीमन चुनावों में समान भागीदारी और प्रतिनिधित्व को सुनिश्चित करता है, ताकि कोई क्षेत्र अन्य क्षेत्रों से अधिक या कम प्रतिनिधित्व न पाए। - समाजिक संतुलन:
परिसीमन से यह सुनिश्चित होता है कि सामाजिक, जातीय और भौगोलिक विविधताओं को सही तरीके से चुनावी प्रणाली में समाहित किया जाए।
परिसीमन प्रक्रिया कैसे काम करती है:
- परिसीमन आयोग का गठन: सबसे पहले, राष्ट्रपति परिसीमन आयोग (Delimitation Commission) का गठन करते हैं। यह आयोग एक विशेष आधिकारिक निकाय होता है, जो चुनावी क्षेत्रों की सीमाएं तय करने का काम करता है। आयोग के अध्यक्ष आम तौर पर सर्वोच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश होते हैं, और इसके सदस्य विभिन्न राज्यों के प्रतिनिधि होते हैं।
- आधिकारिक आंकड़े और जनगणना: परिसीमन के लिए आधार जनगणना के आंकड़े होते हैं। भारत में जनगणना हर 10 साल में होती है, और यह आंकड़े परिसीमन आयोग के काम के लिए सबसे महत्वपूर्ण होते हैं। आयोग इन आंकड़ों का उपयोग यह निर्धारित करने के लिए करता है कि प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र में कितनी जनसंख्या है।
- जनसंख्या का समान वितरण: परिसीमन के दौरान, आयोग यह सुनिश्चित करता है कि सभी निर्वाचन क्षेत्रों में लगभग समान संख्या में मतदाता हों। यह “वोटर्स का समान प्रतिनिधित्व” सुनिश्चित करता है। हालांकि, कुछ भौगोलिक और प्रशासनिक विशेषताओं (जैसे पहाड़ी क्षेत्रों, दूरदराज के इलाके आदि) के कारण थोड़ा भिन्नता हो सकती है।
- सामाजिक और भौगोलिक संदर्भ का ध्यान: परिसीमन आयोग निर्वाचन क्षेत्रों का निर्धारण करते वक्त सामाजिक और भौगोलिक संदर्भों का भी ध्यान रखता है। उदाहरण के लिए:
- कुछ क्षेत्रों में जाति, समुदाय, या अन्य सामाजिक संरचनाओं का प्रतिनिधित्व महत्वपूर्ण हो सकता है।
- भौगोलिक दूरी और आवागमन सुविधाओं को भी ध्यान में रखा जाता है। पर्वतीय इलाकों या अन्य कठिन क्षेत्रों में कुछ विशेष व्यवस्थाएं हो सकती हैं।
- सुझाव और रिपोर्ट तैयार करना: परिसीमन आयोग अपने काम के दौरान राज्यों और अन्य संबंधित पक्षों से सुझाव और प्रतिक्रिया प्राप्त करता है। इसके बाद, आयोग अपनी रिपोर्ट तैयार करता है, जिसमें सभी नए निर्वाचन क्षेत्रों की सीमाएं, उनके आकार और उनकी विशेषताएं होती हैं।
- रिपोर्ट का अनुमोदन और लागू करना: परिसीमन आयोग अपनी रिपोर्ट राष्ट्रपति को प्रस्तुत करता है। राष्ट्रपति इस रिपोर्ट को स्वीकार करते हैं और इसे लागू कर देते हैं। रिपोर्ट लागू होने के बाद, सभी चुनावों में नए परिसीमन के आधार पर चुनाव होते हैं।

परिसीमन के बाद का प्रभाव:
- निर्वाचन क्षेत्रों का पुनर्निर्धारण: हर राज्य और केंद्र शासित प्रदेश के निर्वाचन क्षेत्रों की नई सीमाएं तय की जाती हैं।
- जनसंख्या का प्रतिनिधित्व: अब प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र में जनसंख्या के हिसाब से एक समान प्रतिनिधित्व सुनिश्चित होता है।
- आवश्यक चुनावी बदलाव: नए परिसीमन के आधार पर, चुनावों में उम्मीदवारों के लिए नए निर्वाचन क्षेत्रों में चुनाव लडऩे का अवसर मिलता है।
परिसीमन प्रक्रिया के प्रमुख उद्देश्य:
- लोकतांत्रिक समानता: यह सुनिश्चित करता है कि सभी नागरिकों को समान प्रतिनिधित्व मिले।
- न्यायपूर्ण चुनाव: जनसंख्या के हिसाब से निर्वाचन क्षेत्रों का निर्धारण, ताकि कोई भी क्षेत्र अत्यधिक या कम प्रतिनिधित्व न प्राप्त करे।
- समाजिक संरचना का ध्यान: समाज के विभिन्न वर्गों और समुदायों का उचित प्रतिनिधित्व हो, खासकर उन क्षेत्रों का जो सामाजिक, सांस्कृतिक या भौगोलिक दृष्टि से विशेष हों।
भारत में परिसीमन (Delimitation) प्रक्रिया विभिन्न समयों पर हुई है, और यह खासतौर पर जनसंख्या वृद्धि और बदलावों को ध्यान में रखते हुए की जाती है। परिसीमन आयोग द्वारा आयोजित परिसीमन की प्रमुख घटनाएँ निम्नलिखित हैं:
1. 1950-51 (पहला परिसीमन):
भारत में पहला परिसीमन 1950-51 में हुआ था, जो भारत की पहली जनगणना के बाद हुआ। यह परिसीमन आयोग ने भारतीय संविधान के अनुच्छेद 82 के तहत किया था, जिससे संसद के निर्वाचन क्षेत्रों की सीमाएं तय की गईं। इस समय पर भारत में एक ही परिसीमन किया गया था, जो पूरे देश में चुनावी क्षेत्रों को एक समग्र रूप से पुनर्विभाजित करता था।
2. 1960 में दूसरा परिसीमन:
इस परिसीमन का मुख्य उद्देश्य राज्यों के भीतर निर्वाचन क्षेत्रों का पुनः निर्धारण था। 1961 में हुई जनगणना के बाद, परिसीमन आयोग ने संसद और राज्य विधानसभाओं के निर्वाचन क्षेत्रों की सीमाएं फिर से निर्धारित की।
3. 1976 में तीसरा परिसीमन:
1971 की जनगणना के आधार पर, तीसरा परिसीमन आयोग गठित किया गया। इस परिसीमन में संसद और विधानसभा के क्षेत्रों के आकार और सीमा को फिर से तय किया गया। इसका उद्देश्य जनसंख्या के अनुसार सही प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करना था। यह परिसीमन एक महत्वपूर्ण बदलाव था क्योंकि इसमें विधानसभा क्षेत्रों का पुनर्विभाजन किया गया।
4. 2002 में चौथा परिसीमन:
चौथा परिसीमन आयोग 2002 में गठित हुआ और इसकी प्रक्रिया 2008 तक चली। इस परिसीमन ने भारतीय संसद के और राज्य विधानसभाओं के निर्वाचन क्षेत्रों को पुनः विभाजित किया। चौथे परिसीमन का विशेष उद्देश्य था राज्यों के प्रतिनिधित्व को समायोजित करना, क्योंकि जनसंख्या में बदलाव हुआ था।
5. 2011 की जनगणना और भविष्य के परिसीमन:
2011 में भारत में एक नई जनगणना हुई, लेकिन परिसीमन आयोग ने अगले परिसीमन की प्रक्रिया को 2026 तक स्थगित कर दिया। इसका कारण यह था कि जनसंख्या वृद्धि में कुछ स्थिरता थी और परिसीमन के लिए तैयार होने में समय था। आगामी परिसीमन 2026 के बाद होगा, जिसमें फिर से राज्यों के विधानसभा और लोकसभा निर्वाचन क्षेत्रों की सीमाएं तय की जाएंगी।
महत्वपूर्ण बिंदु:
- परिसीमन आयोग द्वारा अब तक किए गए परिसीमन में लोकसभा और राज्य विधानसभा दोनों के निर्वाचन क्षेत्रों को ध्यान में रखा गया।
- जनसंख्या आधारित परिसीमन: जनसंख्या में बदलाव और असमानताओं को देखते हुए, हर 10 साल में जनगणना के आधार पर परिसीमन किया जाता है।
परिसीमन का उद्देश्य लोकतांत्रिक प्रतिनिधित्व को उचित और समान बनाना है, ताकि चुनाव में सबको निष्पक्ष अवसर मिले।
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